जिंदगी की राह
जिंदगी की राह
एक जले हुए दिल के ठहाके
ख़लिश भरी कंटीली ज़िंदगी की राह पर गूँजते रहे
अपनों के बहरे शहर में आज तक किसीने नहीं सुने.!
रिश्तों की पोटली है तो बहुत भारी
पूरा भार अपनी पीठ पर लादे मुस्कुराती रही,
अरसे से सीने में पल रहा नाइंसाफ़ी का गुब्बार
आज छलक रहा है.!
बरसों से बोती आ रही हूँ एहसासों के बीज
अपनों की उर धरा पर, सहरा ही सहरा था,
प्रतिसाद की एक कोंपल तक ना फूटी कहीं से.!
दिल में एक मलाल रह-रह कर करवट लेता है,
ठगी गई अपनों से ही ये नासूर रूह में पनपता है.!
मीठी नदियों के मोह में घिरी रही खारे समुन्दर से.!
उन लफ़्ज़ो की कातर आज जान गई,
कितनी रंगीनियों से सजा लेते है अपने मुखौटे ये जोकर,
खेल ही खेल खेल में खाती गई मैं ठोकर.!
ज़िंदगी के दरख़्त में छुपे है अनगिनत अजगर,
बदहवास सी मैं तलाशती रही,
थक गई ना मिला कहीं अपनेपन का सागर.!
तैरती रही छटपटाते साहिल को ढूँढती
हर जतन कर हारी मझधार में ही धंसती रही.!
तिल तिल मौत का दर्द खत्म हुआ
आज मेरी मौत पर मुखौटों के पीछे से अपनों के
चाॅकलेटी रैपर में लिपटा मातम का शोर सुनाई देता है.!
"नैराश्य से मरी हूँ सालों पहलें शूल सहते,
रस्म अदायगी होंगी इस जिस्म की आज"
काफ़ी है मेरे अपनों का अहसान इतना,
चार काँधों पर लेकर चलेंगे आज
ऐसे किसी अज़ीज को उठाया हो जैसे।
