जिंदगी जी लो ज़रा सा
जिंदगी जी लो ज़रा सा
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आज मानव सुनता नहीं आत्मा की आवाज़,
बजाता रहता है बाहरी सुर और साज।
इंसान का इंसान पर नहीं रहा है भरोसा,
मिली है ज़िन्दगी,तो जी लो ना इसको ज़रा सा।
हँसते हुए जो सुबह निकलते हैँ घर से,
शाम तक वह एक घड़ी सुकून को तरसे।
मोह माया में लिप्त पड़ा ये सारा संसार,
ऐसे में मासूम दिल को कैसे मिले प्यार।
जो हंसकर गुजार लेते हैँ ये ज़िन्दगी ,
वो हमेशा उदाहरण बन जाते हैँ सबकी।