STORYMIRROR

shaanvi shanu

Tragedy

4  

shaanvi shanu

Tragedy

जिंदगी जी लो ज़रा सा

जिंदगी जी लो ज़रा सा

1 min
286

आज मानव सुनता नहीं आत्मा की आवाज़,

बजाता रहता है बाहरी सुर और साज।


इंसान का इंसान पर नहीं रहा है भरोसा,

मिली है ज़िन्दगी,तो जी लो ना इसको ज़रा सा।


हँसते हुए जो सुबह निकलते हैँ घर से,

शाम तक वह एक घड़ी सुकून को तरसे।


मोह माया में लिप्त पड़ा ये सारा संसार,

ऐसे में मासूम दिल को कैसे मिले प्यार।


जो हंसकर गुजार लेते हैँ ये ज़िन्दगी ,

वो हमेशा उदाहरण बन जाते हैँ सबकी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy