सिलसिला
सिलसिला
बहुत सोचा पर समझ नहीं आई एक बात कसम से,
तुम मुझ मासूम से इतनी बेवफाई कैसे कर लेते हो।
तुम्हारा जब दिल भर जाए तुम साथी बदल लेते हो,
बिछड़ जाने के डर से तुरंत नया यार बदल लेते हो।
न जाने क्यूँ और कैसे हुआ ये इश्क तुमको हमसे,
और अब तोड़कर सारे कस्मे वादे निकल लेते हो।
कहीं तुम्हारा ये दिल कोई गहरा समंदर तो नहीं,
कि जिसको चाहा उसे अपने अंदर निगल लेते हो।
माना कि,महबूब बदलना रिवायत है सियासत में,
तुम भी चिकना चेहरा भरी जेब देख फिसल लेते हो।
किसी का नाम बदनाम हो जाए क्या फर्क पड़ता है,
तुम्हें अपनी चलानी है, क्यों बिना बात दखल देते हो।
आए थे मेरी ज़िन्दगी में मोहब्बत के मसीहा बनकर,
जो इश्क निभाना आता नहीं,तो गैरों की नकल लेते हो।
