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shaanvi shanu

Romance Fantasy

4.5  

shaanvi shanu

Romance Fantasy

मधुमास लागे सुहावन

मधुमास लागे सुहावन

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मैं झाँकती हूँ समय के गलियारे से,

हवा तेज़ है और बसंत का मौसम !

मन के अंदर खिलते रहते मधुबन,

कभी मंद कभी तेज़ हवा में मगन !


धीरे-धीरे कान में यूँ कहता है कोई,

नयन क्यों मूँदे मेरे आज शाम सकारे !

नदिया सी बहती रहती मैं कल-कल,

प्रियतम भूल गये वो क्या दिन न्यारे !


अन्तर कितना है तब और अब में,

देखो ज़रा गौर से तुम इस पल को !

ख्वा़ब कभी जो देखे थे हमने मिलके ,

वायदे किये थे हर एक पल छिन के !


अब न तुम वो तुम हो न मैं वो मैं हूँ,

तुम उस जहाँ में और इस जहाँ में मैं हूँ !

मधुर मधुर मधुमास लागे मोहे सुहावन,

आजा साँवरे,भर मांग मेरी तो मैं बनूं सुहागन !


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