मधुमास लागे सुहावन
मधुमास लागे सुहावन
मैं झाँकती हूँ समय के गलियारे से,
हवा तेज़ है और बसंत का मौसम !
मन के अंदर खिलते रहते मधुबन,
कभी मंद कभी तेज़ हवा में मगन !
धीरे-धीरे कान में यूँ कहता है कोई,
नयन क्यों मूँदे मेरे आज शाम सकारे !
नदिया सी बहती रहती मैं कल-कल,
प्रियतम भूल गये वो क्या दिन न्यारे !
अन्तर कितना है तब और अब में,
देखो ज़रा गौर से तुम इस पल को !
ख्वा़ब कभी जो देखे थे हमने मिलके ,
वायदे किये थे हर एक पल छिन के !
अब न तुम वो तुम हो न मैं वो मैं हूँ,
तुम उस जहाँ में और इस जहाँ में मैं हूँ !
मधुर मधुर मधुमास लागे मोहे सुहावन,
आजा साँवरे,भर मांग मेरी तो मैं बनूं सुहागन !