ये जीवन एक रैन बसेरा
ये जीवन एक रैन बसेरा
देखो मिटा अंधेरा आया नूतन सवेरा !
सैया छोड़ उठ,ये जीवन एक रेन बसेरा !!
मंदिरों की सुमधुर बज उठी घंटी ,
आवाज-ए-आजान समाँ बहुतेरा !!
भज़न-कीर्तन कर सदकर्म कमा पुण्य,
ये अपना जीवन जोगी वाला डेरा !!
गुम गया तु जो अंधकार में दोबारा,
तो शायद फिर कभी न होगा सवेरा !!
कयों उलझ रहा तु व्यर्थ स्वार्थ में ,
अब काहे करे क्या मेरा-मेरा !!
सोच,क्या लाया था संग अपने तु ,
और क्या होगा ले जाना तेरा !!
जो है न आज तेरा वो न कल तेरा,
यहाँ चिडियों का सिमित बसेरा !!
भले कर्म कर सदा फिर नहीं मिलेगा,
यह दुर्लभ मानस जन्म का फेरा !!
