जीवन युद्ध
जीवन युद्ध
कॉलेज की पढ़ाई के बाद भी वह उदास था !
न जाने क्यों परेशान ... और हताश था ....
आगे क्या भविष्य में होगा ?
क्या मंजिल मिल पाएगी ?
क्या निराशा ही गले लगाएगी ?
मन में मानो विचारों का अंतर्द्वंद्व था ...
प्रश्नों का महाभारत मानो छिड़ा हुआ था!
मन अभिमन्यु के चक्रव्यूह से ..
बाहर नहीं निकल पा रहा था !
अर्जुन रूपी कर्मयोद्धा सा बनना चाह रहा था !
पर गुरु रूपी गीता उपदेशक नहीं मिल पा रहा था!
दिन रात चिंता, डर ,व्याकुलता का शोर बढ़ता जा रहा था !
ऐसे में आत्म मंथन से ..
स्वयं को शान्त करके पाया कि ...
सारे प्रश्नों के उत्तर तब मिलते हैं !
जब चित्त को ध्यान की अवस्था में हम करते हैं।
जब पानी उबलता है या ख़ौलता है ..तो बरतन,
की तली कहाँ दिख पाती है ?
पर जब यही पानी शान्त चित्त में रहता है !
तो उसकी तली में अक्स अपना दिखाई देता है।
इसलिए क्लान्त मन को धीरे धीरे समझाया ..
और उसने शांत मन से जीवन के लक्ष्य को ,
अपने अस्तित्व के प्रश्न का उत्तर पाया !
और पाया कि वह रुचि के अनुसार ही काम करेगा ..
परम्परागत राह को छोड़ उसने नवीन रास्ता अपनाया !
भले ही कुछ चुनौती भी आई,
पर उसे लक्ष्य से न डिगा पाई !
अतः उसने स्टार्टअप के द्वारा न केवल अपना,
बल्कि अपने जैसे कई लोगों का भविष्य उज्ज्वल बनाया !
सच जीवन सिर्फ़ चिंता का नाम नहीं , समस्या का नाम नहीं,
जीवन तो संघर्ष और कर्म का नाम है !
जो इस सच को समझ जाता है ...
वही जीवन युद्ध मे पुरस्कार भी पाता है !