जीवन की ओर
जीवन की ओर
चौराहे पर लगी लाल बत्ती
जो करती है सहन
अनगिनत आँखों की दृष्टि
का नित भार वहन
किसी की प्रतीक्षा,आक्रोश व निराशा
तो कहीं बेबसी, व्यथा और आशा
किसी की झुंझलाहट, तनाव व हताशा
तो कहीं भूख, मजबूरी और तमाशा
कोई देख इसे दौड़ कर आता
खेल-खिलौने अपने दिखलाता
कोई बदलने भाग्य शीशा चमकाता
कोई पसार हाथ पेट भरने आता
गति को विराम देती लाल बत्ती
बताती है,जरा ठहर सँभल
तो किसी के सपनों में रंग भरती
जगाती है उम्मीद की किरण।