जीना मुझको आ गया
जीना मुझको आ गया
रंग जीवन में भरना
मुझे आ गया,
छुपा के गमों को सीने में
मुस्कुराना मुझे आ गया।
जख्म जो इस दिल में
वह तो कभी भरा नहीं,
पर जख्मों पर मरहम
लगाना मुझे आ गया।
उनको भ्रम था मर जाऊंगी
मैं बिन उनके,
लो अब उनके बिना भी
जीना मुझको आ गया।
भरी महफिल में यूं ही
खोई खोई रहती थीं मैं,
अब खुद को छुपा के खुद में
मुझे रूबरू होना आ गया।
अब फुर्सत नहीं मुझको
तुझको याद करने की,
तेरी दी हुई यादों पर
अब बांध लगाना आ गया।
मत पूछ ए सखी कौन हूं मैं,
अब चेहरे पर चेहरा
लगाना मुझे भी आ गया।