जी लूँ क्या
जी लूँ क्या


जी लूँ क्या मैं भी मेरे वजूद का अर्थ
वक्त के आसमान में क्या मेरे हिस्से के लम्हें का सराबोर बादल छिपा है...
रख लूँ संजोकर वो लम्हा अपने भीतर जो सिर्फ़ मेरा अपना है, पर कौन देगा मुझे वो लम्हा ?
सबने मुझसे लिया ही है
लेने वालों का दामन खाली गगरी सा ठननननन सा बजता है....
थर्रथराती रात में तन्हा ज़िंदगी से बहती तान सुनो,
एक चाह मुझे बुलाती है
मुझमें कुछ अतृप्त से खयाल निरंतर बहते है
जी रही हूँ जीने की आस लिए
जीस्त में ज़िंदगी को ढूँढती, हाथ खाली है...
तन्हा साँसों की लू जलाती है मौन हंसी की ज्वाला मन को जलाती है
ज़िदगी की अवहेलना उर को उलझाए...
मेरे आसपास एकलता का साया है जो नितान्त मेरा अपना है
किस्मत मेरी बांझ है वक्त के गर्भ में मेरे हिस्से की खुशीयाँ ठहरती ही नहीं...