ख लूँ संजोकर वो लम्हा अपने भीतर जो सिर्फ़ मेरा अपना है, पर कौन देगा मुझे वो लम्हा ? ख लूँ संजोकर वो लम्हा अपने भीतर जो सिर्फ़ मेरा अपना है, पर कौन देगा मुझे वो लम्हा...
श्राद्ध के दिनों में पूर्वजों को अपनी अतृप्त चाह पुरी करने के लिए आने का आहवान करती यह कविता... श्राद्ध के दिनों में पूर्वजों को अपनी अतृप्त चाह पुरी करने के लिए आने का आहवान क...
अतृप्त ख्वाब, झूठे वादे और अश्कों से आंखें पुरनम, ये जीवन की मृगतृष्णा भी है, झूठ और सच का संगम। अतृप्त ख्वाब, झूठे वादे और अश्कों से आंखें पुरनम, ये जीवन की मृगतृष्णा भी है, झ...