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Neeraj Yadav

Tragedy

5.0  

Neeraj Yadav

Tragedy

यूं ही जनम जनम

यूं ही जनम जनम

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399


अतृप्त ख्वाब, झूठे वादे और अश्कों से आंखें पुरनम,

ये जीवन की मृगतृष्णा भी है, झूठ और सच का संगम।


अब इन रिश्तों के धागों से, डर जाता है ये मन अक्सर,

सब कुछ लेते है छीन और दे जाते है जी भर के ग़म।


कुछ वादों से, कुछ बातों से, अहसास करा अपनेपन का,

एक मृगमरीचिका जैसे ही, कुछ बसा दिये इस दिल में भ्रम।


ये भी संज्ञानित है मुझको, देंगे सपने सिकता जैसे,

फिर अर्पण करके जायेंगे, ताउम्र मुझे ग़म का सरगम।


मैं फिर भी पंथ निहारूंगा, शबरी जैसा स्नेह लिए,

अन्तर्मन और इन आंखों में, दर्शित होंगे बस तुम ही तुम।


शाश्वत इस प्रेम साधना को, तुम गये तिरिस्कृत कर "नीरज",

पर निश्च्छल, सत्य समर्पण तुम, पाओगे यूं ही जनम जनम।।


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