ये दिल रख दूं
ये दिल रख दूं
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लरजते होंठ और नजर-ए-अदा, कातिल लिख दूं,
लबों ने लबों तक जो तय की, वो मंजिल लिख दूं।
ये कायनात, ये दुनिया की शै तो कुछ भी नहीं,
ज़रा सा कह तो सही, कदमों में ये दिल रख दूं।
भले मैं उलझा रहा, वक्त के थपेड़ो में,
डुबाकर खुद को, तेरे सामने साहिल रख दूं।
मैं तुझे चांद कहूं या बुलाऊं प्रीत का सागर,
या तुझे ख्वाहिशों की झील का, कमल लिख दूं।
करूं मैं इबादत तेरी, खुदा अपना बनाकर के,
या तुझे लफ्जों में भरके, कोई गजल लिख दूं।
तेरा साया बुलन्द है, वजूद में नीरज,
अपनी पाकीज़ा मोहब्बत को, गंगाजल लिख दूं।