Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Shahwaiz Khan

Abstract Others

4  

Shahwaiz Khan

Abstract Others

झूठा सच

झूठा सच

1 min
233


बदन से टकराती हुई ये हवा और धूप की तपिश

मेरे जहनों गुमाँ के चाक पर 

जिस ख्याल को बनाकर 

दिलों के तारो में सोए पड़े

जिन नगमें को जगाना चाहती है

जैसे भरे ज़ख्म को कुरेदना चाहती है

सीधी राहों पे चलती हुई ज़िंदगी

फिर डगर भटकाना चाहती है

मेरे ख़्यालों और गुमानों में तुम हो मगर

हक़ीक़त में आँखों के लिए कुछ भी नहीं है

नहीं है अब, अब है तो ये ख़्याले मुसव्वरी है

तस्वीरों में रुके हुए कुछ लम्हे है 

कुछ मुकद्दस किताबों के सफ़ो में

सच्चाई की डगर पे चलते

कुछ सन्तों के काफिले है

जो सच्चे है

कुछ शहीद है जिनके लहू के छीटों से

महक आज भी फूटती है

जिनके नामों को शहादत बोसे आज भी देती है

वो सच्चे है

सावन में बरसती बरसात की झड़ी सच्ची है

उस किसान की मुस्कान सच्ची है

जिसकी फ़सल लहलहाकर उसकी हथेलियों को चूमती है

बसंत में डाली पें कोई गोरी झूला झूलती है

वो सच्ची है

एक मल्लाह की कश्ती किनारे को चूमती है

ये सच्चे है

सच्चे है मेरे गाँव

सच्चे है मेरे तीज त्यौहार

सच्ची है ये जमीन

सच्चा है ये आसमान

मगर जो सच्चे नहीं थे

वो तेरे वादे थे

जो मेरी हथेलियों पे तूने किये और फिर

मिटा दिए

जैसे के वो राएगाँ थे

और में आज तलक इसी कशमकश में हूँ

तेरा प्यार सच्चा था

या झूठा था

वो सच्चा झूठ था या झूठा सच था


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract