आज भीकल भीऔर हमेशा...
आज भीकल भीऔर हमेशा...
अपनी अपनी अनाओ के कफ़स से हम जब निकले
तब दरमियाँ अपने फ़ासला पाया और
हम स्याह धुंध मे भटकते हुये
हम कहाँ पहुँचे
तुम कहाँ पहुंचे
फ़ासलो के साथ वकत की रफ़तार भी
कुछ कम ना थी
ज़रा पलक झपकी एक मुद्दत का अर्सा पाया
पाँव तलक अब तेरी दहलीज़ से परहेज़ करते हैं
ख़्याल तक में तेरी सूरत नही आती मगर
एक शराबी का सरापा हाल हुई है ज़िंदगी
पीना छोड़ दी है मगर
साग़र ओ मीना की देखने की आदत नहीं जाती
अब हर कविता में जोड़ रहा हूं तुझे में
टुकड़ा टुकड़ा
कोई पढ़ भी ले अगर
कहानी उसे समझ नहीं आनी
और हाँ
सुना है तुझे याद में अब भी आता हूँ
सुना है तू मेरी गज़लें गुनगुनाती है
सुना है दुआओं में तुझे में याद रहता हूं
सुना है ज़मीं पर मेरा नाम लिखकर मिटा देती है
ये सब सुनी सुनाई बातों में
ये हक़ीकत में तुझे बता पाता
हाँ में तुम्हें याद करता हूं
हाँ तुम मेरी कविताओं का उन्वान हो
हाँ अब भी चुपके चुपके तुम्हें दुआओं में माँगता हूँ रब से
हाँ में तेरा नाम लिखता कभी मिटाता हूं
हाँ मुझे प्यार है तुमसे
आज भी कल भी और हमेशा।