बारिश...
बारिश...
बाहर अभी भी बारिश हो रही है
सब अपनी कहानियों मे सो गये हैं
अंधेरें मे बस कुछ आवाज़ो की तसवीरे हैं
कुछ नही है अब बाहर ,पानी के सिवा
शोर सारे अब खामोश है
कुछ बूंदो का संगीत है
कुछ भीगे पत्तो की पुकार है
बहती हुई ठन्डी हवा के साथ में
बीती सुबह से रोशनी फ़क़त सूरज के साथ थी
हमारे और कमरे के दरमियां
ना जाने क्यूं आज बल्ब ने ऑख नही खोली है
आवाज़ो के सवालो का
आवाज़ों से जवाब देते इस सिलसिले मे
हम अपने होने का पता देते है
एक दूसरे को
मगर कभी कभी
कुछ रंगीन दिवारो पे नक़्श याद आ जाते हैं
चंडाक की पहाड़ियो से दूर जहां से
नज़र आता है हिमालय मुकुट
वहाँ पर जहा पर कैद है
क़तरो का समन्दर
उसके किनारे किनारे
खड़े किये थे नीले पहाड़ो का झुंड
जहाँ कोने कोने से आती थी
भूखे शेरो के दहाड़ो की खड़ग
जब हो ना रुकने का इरादा
फिर
ओम पर्वत से लेके उस ख़ास ग़ारे पाकिज़ा
पवित्र मन्दिरो के संग सगं पर्वतो की गोद मै
ख़्वाब सब रंगीन करके
बस अब सामने थी मन्ज़िल
मगर आसान नही है
वक़्त की चाल के आगे टिकना
और इसी रस्साकशी मे
आसमाँ कुछ रह गया
हम उससे दूर रह गये
मगर
अब भी एक ही सवाल उभरता है
हम यहाँ क्यूं ठहर गये
और
अरमां सारे काफ़ूर हो गये
अब हम इस ठहरे समन्दर मे
एक गीले आसमां और अंधेरे के साथ
नम ठन्डी हवा मे है
मगर
अभी भी उम्मीद ज़िन्दा है
एक जुगनू ज़िन्दा है
यक़ीन के रास्ते पर मेहनत की सिड़ी पे चढ़कर
हम अधूरे आसमाॅ को रंगकर
इरादो के पहाड़ो की चोटियो को
और ऊचाँ ले जायेंगे
और रोशन कर देंगे
आसमाँ और पहाड़ो के दरमियाँ
हल्की नीली रोशनी का रंग भरकर
फिर
अपने रास्ते पर चल पड़ेगे
किसी समतल शहर मे
सांस लेगे राहत की
और
बाहर अभी भी बारिश हो रही है
सब अपनी कहानियो मे सो गये हैं।