।। जद्दोजहद ।।
।। जद्दोजहद ।।
कोई फैसला कोई उम्मीद , तू न मुझ से कर,
मैं तो खुद उलझा हूँ ,बस अपने सवालों में,
तेरा मुस्तक़बिल हूँ ये ,मैं अभी कैसे कह दूं,
ढूंढ़ता जब सुबह शाम, ख़ुद ही को ख्यालों में।।
न तू कर एहतराम इतना , मेरी रहनुमाई पर,
अभी तो साहिल से, मेरी जद्दोजहद ये जारी है,
राहे मंज़िल की दुस्वरियाँ, न हैं अभी कोई कम,
मेरा ठोकरें खाकर, संभलने का सफर जारी है।।
मेरे तजुर्बे भी बाखुदा, रोज़ ही तो बदलते हैं,
ये इम्तेहान जिंदगी के, तो खत्म बस नहीं होते,
नतीजा हर बार ही, नहीं होता हक़ में अपने,
ज़वाब कुछ तो हैं जो, अब भी सही नहीं होते ।।
फिर से उठाई है कलम, नया कुछ लिखने को,
साफ़गोई से कहूं तो ज़ेहन, फिर से उलझा है,
फिर भी न जाने, अंगुलियों ने इबारत है लिखी,
सदा है उनकी ,कोई मसला तो आज सुलझा है ।।