जब तक मैं बेहोश हूँ
जब तक मैं बेहोश हूँ
जब तक मैं बेहोश हूँ
तुम होश में रहना !
गर मैं ना कुछ बोलूँ
तुम ख़ामोश मत रहना !
इतनी क्यूँ दूरियाँ ?
बनती क्यूँ मगरूर हो ?
कुछ पल मेरे पास ही रहना !
देखो ! रुख़सत को मुसाफ़िर
मेरे सब यार आये हैं
तुम क्यों नज़रें झुकाती हो
जानता है सब ये ज़माना !
सुर्ख़ आँखें तुम्हारी
पलकें भी नम हैं
बहुत देर हो गयी
बेकार है अब यूँ
आँसू बहाना !
है ना खता तुम्हारी,
समझ सकी ना हमको,
शायद ना आया हमको समझाना !
लो! अब तो वक़्त-ए रुख़सत हुआ मुसाफ़िर ,
हो गए तैयार सब,
है अब ज़नाज़ा उठाना !
अलविदा कैसे कहूँ तुम को
ये रस्म है ऐसी,
आँखें बंद, लब भी सीले हैं,
अब तो मेरे बस में कहाँ
दिल को धड़कानाा !
जब तक मैं बेहोश हूँ
तुम होश में रहना !
गर में ना कुछ बोलूँ
तुम ख़ामोश मत रहना !

