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Manju Rani

Tragedy

4  

Manju Rani

Tragedy

जाने हम कहाँ जा रहे?

जाने हम कहाँ जा रहे?

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दर्द के काफिले थमते ही नहीं,

मधुर प्रेममय गीत

अब दस्तक देते ही नहीं,

गीतों की धड़कन धड़कती नहीं ।

पर साँसे अभी भी चलती

वो साथ छोड़ती नहीं

विरानो में भटकती रहती ।

जीने के मायने ढूँढती रहती

कभी चूल्हे पर फूलती रोटी में,

कभी उस हवा में जो चलती ही नहीं

बस साँए-साँए का शोर मचाती रहती ।

ये पिंजर बस साँस लेते

जीता तो कोई नहीं ।

इस खोखले दिल की दुनिया में

हृदय में कोई बसता नहीं ।

वो किसी के लिए धड़कता नहीं,

बस धमनियों में रक्त बहता

जो अब सफेद हो चुका

लाल कण एक भी नजर आता नहीं।

कैसे कलपुर्जे से जी रहे

अंतः से बंजर-से होते जा रहे ।

अकेले-से भीड़ में ,

भीड़ में तन्हाइयों में जी रहे ।

अपने ही दर्द से अनजान ,

दूसरे के दर्द से परे होते जा रहे

जाने हम कहाँ जा रहे ?


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