जाने हम कहाँ जा रहे?
जाने हम कहाँ जा रहे?


दर्द के काफिले थमते ही नहीं,
मधुर प्रेममय गीत
अब दस्तक देते ही नहीं,
गीतों की धड़कन धड़कती नहीं ।
पर साँसे अभी भी चलती
वो साथ छोड़ती नहीं
विरानो में भटकती रहती ।
जीने के मायने ढूँढती रहती
कभी चूल्हे पर फूलती रोटी में,
कभी उस हवा में जो चलती ही नहीं
बस साँए-साँए का शोर मचाती रहती ।
ये पिंजर बस साँस लेते
जीता तो कोई नहीं ।
इस खोखले दिल की दुनिया में
हृदय में कोई बसता नहीं ।
वो किसी के लिए धड़कता नहीं,
बस धमनियों में रक्त बहता
जो अब सफेद हो चुका
लाल कण एक भी नजर आता नहीं।
कैसे कलपुर्जे से जी रहे
अंतः से बंजर-से होते जा रहे ।
अकेले-से भीड़ में ,
भीड़ में तन्हाइयों में जी रहे ।
अपने ही दर्द से अनजान ,
दूसरे के दर्द से परे होते जा रहे
जाने हम कहाँ जा रहे ?