जाल
जाल
मानव जीवन भी इक जाल सा है
जितना निकलने की कोशिश करो
उतना ही उलझता जाता है
तृष्णाओं के पीछे-पीछे
अंतहीन भागता ही जाता है
कबर में लटके हैं पैर पर इच्छाएं
तो अभी जवान है
हाय रे मनुष्य तेरी ऐसी जिंदगी बड़ी नाकाम है.
