इज़हार-ए-मुहब्बत…
इज़हार-ए-मुहब्बत…
इज़हारे-मुहब्बत हुआ लेकिन ख्वाब ही में |
ज़िन्दगी ने मुझे छुआ लेकिन ख्वाब ही में |
न मिलेंअगर वो हम से, शिकवा नहीं है,
मिल लिया करते हैं उनसे ख्वाब ही में |
क्या कहिए मेरी इन नज़रों के हूनर को,
देख लिया करती हैं उन्हें हिजाब ही में |
हालांकि पूछने थे मुझे उनसे कई सवाल,
लेकिन कई सवाल थे उनके जवाब ही में |
न हिम्मत कम हुई , न छोड़ा दामने-उम्मीद,
गो तमाम उम्र ग़ुज़री मेरी अज़ाब ही में |