इतनी दूर तुम न जाना
इतनी दूर तुम न जाना
इतनी दूर तुम न जाना
कि लौटकर भी तुम फिर वापस आ न सको
माना कबसे उन कर्तव्यों की जंजीरों ने
स्नेह रिश्तों से तुमको बांधा रखा था
पर तुम तो अपनी इच्छाओं की
उस लालसा को पूरा करने
रिश्तों को तुम छोड़ गए!
छोड़कर सभी रिश्तों को तुम
न जाने कब इतना आगे निकल गए
और अपने पीछे जाने कितने ही रिश्तों को
तुम अकेला मझधार पर यूँ ही क्यों छोड़ गए!
बाहर के शोर में अपनों को छोड़ उलझे थे ऐसा
कि अपने अंदर के ही एकांत को तुम तो भूल गए!

