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इश्क़ में उनके...

इश्क़ में उनके...

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इश्क़ में उनके वीरान हुए जाते हैं,

बस यही सिर्फ अपना अंजाम किये जाते हैं।


वफ़ा के सीने में उतरके धड़कना,

रूह-ए-इश्क़-ए-तिलिस्म आज बने जाते हैं।


तबियत का मेरी जरा तो हाल ले लो,

बन जफ़ा-ए-मरीज़ सितम हुज़ूर लिए जाते हैं।


चल सकूँ कब तलक डगर बेज़ार-ए-यार,

तर्बियत ख़ाक-ज़ार तन्हा-तन्हा चले जाते हैं।


तोहमत लगा रहा है ज़माना मेरी फ़िकर को,

सहरा-ओ-शबे इन्तज़ार उनके ख़ाक हुए जाते हैं।


नागवार हो चले हैं रूहानियत की नज़र में

बनाये अदावत-ए-मज़ार अब गढ़े जाते हैं।


"है कौन तू?" ऐसा सदक़ा ना दो,

आलम-ओ-रंजिश-ए-गुब्बार हम ढहे जाते हैं।


मक़बूल बन रहा है तीर-ए-क़ज़ा-ओ-असद 'हम्द',

क्यूँकर तिश्नगी-ए-तिलिस्म-ए-ज़ीस्त हम जले जाते हैं।



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