इश्क़ कर, मसखरी ना कर
इश्क़ कर, मसखरी ना कर
अगर इश्क़ करना है तो फ़क़त इश्क़ कर,
हमारी निगाह ए अदब को सरसरी ना कर,
कहीं लड़ जाएं न तेरी आंखों से आंखें,
हमारी तरफ यूँ देखकर मसख़री ना कर !
बहुत ही नायाब होती है वफ़ा की मिट्टी,
रूह से रूह को मिला,यूँ किरकिरी ना कर!
ज़ब यूँ दिल में गूंजने लगे इज़हार के तराने ;
लफ़्ज़ों को सजा,सिर्फ ज़बां से शायरी ना कर !
बड़े ही सख़्ते जां होते हैं वफ़ा ए उल्फ़त वाले,
तू आशिक है तो हुआ करे,बंदा परवरी ना कर !
तेरा उजला बदन होगा चाँद सा सफाक मगर,
एहसान से दरून ए जिस्म को मरमरी ना कर !
वो जो अपनी प्यास पर आज नाज़ाँ रहा है,
उसे इश्क़ के रिवाज़ों - रवाजों से बरी ना कर !