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Dr Javaid Tahir

Romance

1.0  

Dr Javaid Tahir

Romance

इश्क़

इश्क़

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उसने पलकों पे काजल को जब जगह दी है

फिर से रातों को उजालों की हिदायत दी है।


जब ज़िद कर गयी रूह फूलों मे उतर जाने की

तब हुस्न ने तेरे जिस्म पे अज़ां दी है।


तलब कर रही है निशा दामन के सितारों को

ये किसने चाँद को इतनी चाँदनी दी है।


आवारा हो गये परवाज़ों के माहिर सभी

नज़र तेरी उठी क़यामत फ़लक को दी है।


तेरी चूड़ी से रस्क घुलता रहा फ़िज़ाओं में

इन नेमतों की खबर बहारों ने दी है।


जब भी तरसे हैं तेरी ख़ैरात ऐ मोहब्बत को फ़कीर

मैक़दों में साक़ी ने मेज़बानी दी है।


ले गया छीन के मेरी शाम की आज़ादियाँ नसीब

ये ग़ुलामी मुझे तेरी हँसी ने दी है।


फिर कहां ख़ाक की चादर पे उतरेगी शराब

कितने बरसों में नरगिस को कली दी है।


एक तरफ़ मसीहायी एक तरफ़ आँखें तेरी

ये बेदीनी मुझे तेरी अदा ने दी है।


ये मासूम सी पलकें और ये गिरती नज़र

इन सजदों ने क़ोमों को तरबियत दी है।


तड़प लो जितना भी जावेद ग़ज़ल की चौखट पर

वो एक दुआ है, ख़ुदा ने फ़रिश्ते को दी है।।


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