इंतजार
इंतजार
शरीफों के शहर में हम ठहरे गरीब नौजवान ,
मोहब्बत की बगावत करने की औकात नहीं हम में।
रात भर बस ये ही सोचता रहा के साथ देने वाले आज हर कोई मुकर गए,
बाकी है तो बस ये जिंदगी का हमदम।
धूप छाँव में भी ढूंढता रहता हूं अपनी मंजिल
जिसकी परछाई सूरज ढलने के साथ साथ ही
अपने ही परछाई के साथ गायब हो जाता है।
फिर भी जीता हूं इसी इंतजार में के कोई आकर
मेरा दामन पकड़ कर कहे के कहा था तुम इतने दिन से,
आखिर सामने रहते हुए भी दिखाई क्यूं नहीं दिए।