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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

मैं पानी की क्यारी हूँ

मैं पानी की क्यारी हूँ

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मैं एक पानी की क्यारी हूं

मैं लगती बहुत प्यारी हूं

मैं हूँ एक नदी,


प्यास बुझाती, हितकारी हूं

मुझसे सब प्रेम करते हैं

मैं सबकी ही दुलारी हूं

मैं एक पानी की क्यारी हूं

बिना भेदभाव के जल देती हूं,


मैं एक निस्वार्थ भरी नारी हूं

मैं एक पानी की क्यारी हूं

बरसात से मैं भरती हूं

लहरों से मैं नही डरती हूं,

देकर सब जल अपना,


समंदर को देती किलकारी हूं

मैं एक पानी की क्यारी हूं

भारत लगता है मुझे बड़ा ही प्यारा,

माँ सुनकर ख़ुद को समझती भारी हूं

ये देश मुझे भाता है,

इसकी माटी से माँ का दर्जा पाती हूं


मैं जाती इस देश पर पूरी वारी हूं

मैं एक पानी की क्यारी हूं

आज़कल दिल की धड़कनें,

कुछ मन्द सी रहती है

लोगो ने कचरा डाला है, इतना


कभी कभी तो ये बन्द सी रहती है

आज़ के इंसानो के स्वार्थ की मारी हूं

मैं एक पानी की क्यारी हूं

पानी पीकर मेरा ही,

वो जहर उगलते है

मेरे छाती से ही ,


अमृत पीकर वो लड़ते हैं,

हे ख़ुदा

मैं इन इंसानो से,

इन हैवानो से हारी हूं

मैं एक पानी की क्यारी हूं।


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