वक्त कैसा
वक्त कैसा
बदल रहा है वक्त कैसा
चांदनी बरसा रही है आग
सूरज भी थक कर सो गया
हवा रही है अब भाग
रोज रोज आशाएं दौड़े
जाने कितनी कितनी बार
देखी जो लाचारी जैसे
आ बैल मुझे मार
बिटिया ब्याहने को चिंतित
तड़फ रहा है बाप
संघर्षों में सुख चला हो
जैसे लग गया हो शाप
मजबूरी के कारण रिश्ता
करना पड़ा है यार
गले लगाया ऐसा समधी
आ बैल मुझे मार !