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Jayantee Khare

Tragedy

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Jayantee Khare

Tragedy

जिसे मुड़ना न आया

जिसे मुड़ना न आया

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बढ़ती रही मैं यादों के क़तरे 

लेकर के ख़ुद में,

ठुकराते रहे हर वो पुर्ज़े

तुम लहर दर लहर में

मैं नदी हूँ जिसे पलट के 

मुड़ना नहीं आया !


मीलों चली मैं

मिलन को तुम्हारे

और तुम थे गहरे 

अनापरस्त ठहरे

तुम समुंदर हो जिसे आगे

बढ़ना नहीं आया !


मेरा वजूद खोया

जब मिलन तुमसे हुआ,

अंजाम-ए-सफर-ए-इश्क़ 

कुछ इस तरह से हुआ !


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