एक नदी की कहानी।
एक नदी की कहानी।
एक नदी है मेरी सहेली,
अलबेली इठलाती सी।
कुछ मैं कहू कुछ वो सुनाए,
अपनी धुन में बहती जाए।
धरती को जो तृप्त करें तो,
मेरी प्यास बुझा जाए।
तृष्णा मेरे उदर की,
बन अन्न शांत कर जाए।
कितने नाम जाने इसके,
हर कोस नाम बदल जाए।
वर्षा जिसकी माँ हो और,
समुद्र पिता ही कहलाए।
एक आजादी जिसके अंदर,
दुनिया उसे बाँधती जाए।
गिरिराज की पुत्री है लेकिन,
पर्वत बंजर हो जाए।
जो कभी नाराज हो गई तो,
प्रकोप बाढ़ का बन जाए।
दुनिया के तन मन साफ करें,
खुद ही मैली होती जाए।
देवी का स्थान दिया पर,
नदी भी ना समझी जाए।
दूसरों का अस्तित्व बचाती,
अपना अस्तित्व खोती जाए।
विश्व की आधारशिला है जो,
कहीं विलुप्त ना हो जाए।