Devendra Singh
Tragedy
है कहाँ होती क़दर
अब यहाँ इंसान की
जातियां तक बांट डालीं
अब यहाँ भगवान की.
मुहब्बत
अज़ब-गज़ब
सहारा क्या है...
बेवफा
अल्फ़ाज़ बोलेंग...
कैद
उलझन
रक्षाबंधन
होशियारी
कलम चलदर्द लि...
दुख की चादर ओढ़े कौन खड़ा है वो समय समय का फेर है बदल रहा है जो। दुख की चादर ओढ़े कौन खड़ा है वो समय समय का फेर है बदल रहा है जो।
बस एक अजीब सी ख़ामोशी है यहाँ, एक ठहरा हुआ समय हो जैसे। बस एक अजीब सी ख़ामोशी है यहाँ, एक ठहरा हुआ समय हो जैसे।
धरती ऐसे जल रही, जैसे जले मशाल। धूल-धूल रस्ते हुए, सूखे-सूखे ताल। धरती ऐसे जल रही, जैसे जले मशाल। धूल-धूल रस्ते हुए, सूखे-सूखे ताल।
है कितना क्षण भंगुर यह जीवन, अगले पल का पता नहीं। है कितना क्षण भंगुर यह जीवन, अगले पल का पता नहीं।
देखो उस पृथ्वी का मानव ने आज यह कैसा हाल किया है? देखो उस पृथ्वी का मानव ने आज यह कैसा हाल किया है?
मेरी माँ से मैं था मैं फिर से चालीस साल पहले का बच्चा बन गया। मेरी माँ से मैं था मैं फिर से चालीस साल पहले का बच्चा बन गया।
"अरे गौरव, इधर आ जा, देख ले। बता तुझे क्या चाहिए।" "अरे गौरव, इधर आ जा, देख ले। बता तुझे क्या चाहिए।"
कितनी ही कामनाएं मसली है मैंने अपने कोमल हृदय पर खिलखिलाती। कितनी ही कामनाएं मसली है मैंने अपने कोमल हृदय पर खिलखिलाती।
काव्य कुसुम कानन में कविता, कलुषित हुई कहो कैसे? काव्य कुसुम कानन में कविता, कलुषित हुई कहो कैसे?
इक दुबला पतला सा पेड़ था, चंद टहनियां चंद पत्ते थे। इक दुबला पतला सा पेड़ था, चंद टहनियां चंद पत्ते थे।
जब जाती हूं थक... तो निकल जाती हूं घर से बाहर। जब जाती हूं थक... तो निकल जाती हूं घर से बाहर।
मेरे हिंदू मुस्लिम बच्चों को आपस में लड़ाया जाता है मेरे हिंदू मुस्लिम बच्चों को आपस में लड़ाया जाता है
राजनीति के खेल में क्या हार क्या जीत ; ना कोई शत्रु यहां और ना यहां कोई मीत ! राजनीति के खेल में क्या हार क्या जीत ; ना कोई शत्रु यहां और ना यहां कोई मीत !
चीखती नदी मौन प्रार्थना में लीन हो जाती है। चीखती नदी मौन प्रार्थना में लीन हो जाती है।
नौजवान गुमराह हो रहे । दूसरों के इशारों पर अपनों को ही लूट रहे । नौजवान गुमराह हो रहे । दूसरों के इशारों पर अपनों को ही लूट रहे ।
तड़पने वाले को उसके हाल पर छोड़कर निकल जाता हूँ मैं कुछ रूह का हिस्सा दफना कर आ जाता हू तड़पने वाले को उसके हाल पर छोड़कर निकल जाता हूँ मैं कुछ रूह का हिस्सा दफना कर ...
भर जाता तलवार का घाव, शब्दों का नहीं भरता है, शब्दों से मिले ज़ख्मो का, कहांँ कोई मरहम। भर जाता तलवार का घाव, शब्दों का नहीं भरता है, शब्दों से मिले ज़ख्मो का, कहांँ...
यह शहर है यह रोने की जगह नहीं है। यह शहर है यह रोने की जगह नहीं है।
अजी नौकरी का भी अपना मज़ा है। जहां अपनी चलती नही कुछ रज़ा है। अजी नौकरी का भी अपना मज़ा है। जहां अपनी चलती नही कुछ रज़ा है।
मैं तेरी-मेरी बातों के, अल्फ़ाज़ ही वापस लेती हूँ। थक आज गयी हूँ मैं इतना, कि थकान भी वापस लेती हूँ... मैं तेरी-मेरी बातों के, अल्फ़ाज़ ही वापस लेती हूँ। थक आज गयी हूँ मैं इतना, कि थ...