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Kanchan Prabha

Abstract Tragedy Crime

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Kanchan Prabha

Abstract Tragedy Crime

इन्सान की फितरत कंचन प्रभा

इन्सान की फितरत कंचन प्रभा

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आज बदल गई है

फितरत इन्सान की

क्यूँ समझ वो पाते नहीं


धर्म के नाम पर 

लड़ते है झगड़ते हैं 

मिल कर रह वो पाते नहीं


ज्ञानी,प्रेमी,तेजस्वी 

पर ज्ञान का सही उपयोग 

क्यूँ कर वो पाते नहीं


कुदरत ने दिया है उसे

कितना बेहतरीन तोहफा

शायद देख वो पाते नहीं


करे सही उपयोग जो मानव

कभी बैर ना कभी हो दंगा

क्यूँ प्यार से रह वो पाते नहीं


कल्याण हो जाये फिर

धीरे धीरे ब्रह्मांड का

क्रोध मे अगर वो आते नहीं


हर तरफ खुशहाली होती

हर ख्वाहिशे पूरी होती

होठों के मुस्कान जाते नहीं


हिंदु मुस्लिम सिक्ख इसाई

करते करते मरते हैं

एकता प्रेम निभा पाते नहीं।


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