इन्सान-हाड़-मांस का पुतला
इन्सान-हाड़-मांस का पुतला
पंच तत्वों से मिलकर
बना है ये इंसान
माटी का पुतला बनाया
रब ने फूंके उसमे प्राण !
बातें करता बड़ी-बड़ी,
करता खुद पे अभिमान
बस में कुछ भी नहीं
करता मैं का गान !
जब कभी मुसीबत पड़ती,
तब समझ में आये
हम तेरे हाथों की कठपुतली
कह-कह नैनन नीर बहाये
हाड-मांस की काया है
नहीं कोई औकात
एक दिन तो हो जाना है
इसने जल कर राख !
दाह-संस्कार होगा
और वो ...धू-धू कर जलेगा
अंतिम ठिकाना तो
बस शमशान बनेगा !
लाख जतन किये
पाखंड किये पर मृत्यु है अटल
विधि का विधान नहीं सका
कोई भी बदल !
मानव चोला मिला है तुझको
*रेखा*कर ले अच्छे काम,
तन रहे ना रहे पर
लोगों के दिलों में छोड़ जा अपना नाम !