इम्तिहान
इम्तिहान
जैसे आता प्रश्न पत्र,
सर घूम सा जाता है।
कैसे देखूँ इधर-उधर,
इंविगलेटर आँख दिखाता है।
पढ़े तो थे सारे प्रश्न,
पर कुछ याद रहे कुछ भूल गए।
और कुछ केंद्र तक आते-आते,
अंत:मन में ही घुल गए।
घर पे तो डींगे मारी थी,
मुझको सब कुछ आता है।
अब तो परिणाम के बारे में,
सोच के ही दिल घबराता है।
अभी वो बातें याद आती हैं,
जो टीचर ने समझाईं थी।
और बिना कुछ सोचे समझे,
जिसे हँसी में उड़ाई थी।
काश ! अगर मैं सुन लेता तो,
आज न ऐसी हालत होती।
मेरी कलम में भी कुछ,
लिखने की ताकत होती।
