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Kumar Pranesh

Romance

4  

Kumar Pranesh

Romance

ईद मेरी भी हो जाये

ईद मेरी भी हो जाये

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कर ली सज़दा कर ली इबादत,

तस्कीं क्यों न मिले मौला,

सारा जहां है रौश़न फिर भी,

एक श़फा न दिखे मौला,

मेरे करम पे तेरे रहम का,

इतना सा असर बस हो जाये,

हो जाये ग़र दीद जो उसका,

ईद मेरी भी हो जाये !


सबने देखा चाँद फ़लक पे,

मेरा चाँद क्यों रूठऽ रहा,

जबसे उसने फ़ेरी निगाहें,

दिल तारों संग टुट रहा,

एक जी़द है आँखों की बस, 

एक झलक वो दे जाये,

हो जाये ग़र दीद जो उसका,

ईद मेरी भी हो जाये !


साँसें रस्ता देख रही है,

इसको क्या मैं बतलाऊं,

दिल तो चलो नदान सही,

धड़कन को कैसे समझाऊँ,

हर आहट पे चौक रहा मन,

और इसे न कुछ भाये,

हो जाये ग़र दीद जो उसका,

ईद मेरी भी हो जाये !


नज़र अधुरा शज़र अधुरा,

अधुरा यहां जग सारा है,

उसे बिना देखे क्या देखें,

अधुरा यहां हर नज़रा है,

आँखें बदं होने को है अब,

बिन देखे न सो जाये,

हो जाये ग़र दीद जो उसका,

ईद मेरी भी हो जाये !


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