ईद का चाँद
ईद का चाँद
दिल की खामोशी का ब्यां
यहाँ किससे करूँ
सबब अपनी खामोशी पर
रूसवा हो रहें हैं
ये जज्बा ऐसा जहराब है
जिंदगी का
हर शख्स जिससे परेेेशां
हो रहें हैं
उन खामोशी केे जो
कहकशाँ मिल रहे हैं
उनकी आँखों में भी खामोशी के
ब्यां मिल रहें हैं
और उनके मंजिलों के
हर रास्तोंं पर
मेरे ही कदमों के
निशां मिल रहें हैं
जब साथ मयस्सर था
चंद रातों का
तब मुुुझे पता चला
उनके जज्बातों का
फिर बन बैठे ईद का चाँद
वो मेरे लिए
और छुप कर दीदार करते रहे
वो मेरी हर बातों का।

