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Alka Nigam

Tragedy

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Alka Nigam

Tragedy

हत्यारे

हत्यारे

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देखा है अक्सर जो खून बहाते हैं

दुनिया में वही हत्यारे कहलाते हैं।


पर उनका क्या

जो मन को लहूलुहान कर जाते हैं

देते हैं रोज़ आत्मा को नया घाव।


अभिलाषा के पंखों को कतर कतर देते हैं

किसी के सपनों की खिली हुई चाँदनी को

अहम की ठोकर से अमावस में ढकेल देते हैं।


विश्वास की नींव पे टिके हुए रिश्ते की पीठ में

धोखे और फरेब का ख़ंजर मार देते हैं।


बंद कमरों में होते हैं क़त्ल रोज़

और हत्यारे अपने ही रिश्ते में सगे होते हैं।


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