हटाया चाँद ने घूंघट
हटाया चाँद ने घूंघट
अँधेरों की हुकूमत मैं
अभी तक जी रहा था मैं
हटाया चाँद ने घूंघट
उजाला हो गया घर में।
नहीं मालूम था मुझको
अभी तक घर की परिभाषा
अभावों में जिया हूँ मैं
कहाँ कुछ भी थी अभिलाषा
नहीं कोई ठिकाना था
भटकता फिर रहा था मैं
पड़े उसके कदम जिस दम
निवाला हो गया घर में।
कसम से क्या कहूं उसको
बहुत मासूम ठहरी वो
गगन जितना वो ऊँची है
समन्दर से है गहरी वो
वही तकदीर अब मेरी
बहुत तन्हा रहा था मैं
मेरी है आबरू वो अब
दुशाला हो गया घर में।
सुबह से शाम तक पायल
छनकती जब भी आँगन में
बहारों सी हँसी उसकी
खनकती जब भी आँगन में
चमक उठती मेरी आँखें
घुटन में जी रहा था मैं
महकती हैं फिजायें अब
शिवाला हो गया घर में।