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PRATAP CHAUHAN

Romance

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PRATAP CHAUHAN

Romance

अखियाँ करती बरसातें

अखियाँ करती बरसातें

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बाट जोह करके अब हारी, लगता नहीं जिया

एक बरस की हुई जुदाई कैसा जख्म दिया।


हृदय हृदय अब नहीं रहा है, जब से गया पिया

आस लगाये राह निहारे क्यों आता नहीं पिया।


कोसों दूर गया है दिलवर, ना कोई सन्देश दिया

एक माह का मिलन रुलाये कैसा जख्म दिया।


यादों की पीड़ा में तड़पूं, कैसा यह प्रसंग हुआ।

सिहर-सिहर उठता है बदन,जब से जिस्म छुआ।


नींद नहीं आती है अब तो, अखियाँ करती बरसातें

दिन चैन लुटा बैठे हैं हम, और कटती नहीं अब रातें।


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