हर रिश्ते में खून लगा
हर रिश्ते में खून लगा
हर रिश्ते में ही आजकल खून लगा है।
यह पानी भी आजकल जलने लगा है।।
निःस्वार्थता का हुआ सबसे ही दगा है।
बिना मतलब कोई नही हुआ,सगा है।।
हर कोई ही आज चंद पैसों में बिका है।
बेईमानी से कोई भी सर नही झुका है।।
बेईमानी हुई,आज होशियारी तमगा है।
ईमानदारी से सबका ही रिश्ता कटा है।।
खुद को ही महसूस किया,मैंने ठगा है।
जब अपने ही लहूं ने रंग बदल लिया है।।
सबके मुंह पर ही स्वार्थ खून लगा है।
बेमतलब,कोई न किसी का सगा है।।
हर रिश्ता,आज खुद से आगबबूला है।
हर रिश्ते पर आज स्वार्थ का हमला है।।
चाहता साखी अंधेरों करना उजला है।
सिर्फ स्वयं से ही रख रिश्ता,अलहदा है।।
ये रिश्तेनाते न बजाएंगे तेरा तबला है।
गर तू खुद को बनायेगा,कोहिनूर भला है।।