हर राहत दिल को छीन गया
हर राहत दिल को छीन गया
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हर राहत दिल की छीन गया
वो आंखों से मोती बीन गया
क्या बोलूं कितना अपना है
वो दिल का मौसम सून गया
मन पंछी सम उड़ता रहता
अंबर आंचल में छिपता है
वो दूर गगन की स्याही सा
मन की रंगत फिर नील गया
मै मदमस्त मलंग सी रहती हूं
वो वो मौसम बरसात भया
वो मेरी दुनिया में आकर के
हर मौसम का रंग निखार गया
ये रूप निखर जो आया है
उसकी आंखो का जादू है
यूं माथे की बिंदी बन कर वो
दुनिया की नजर उतार गया!