पहले जैसी नहीं थी मैं
पहले जैसी नहीं थी मैं
कुछ इस तरह दर्द की कब्र गाह में दफ़न हो रही थी मैं
के लगा अभी जागी शायद कब से सो रही थी मैं
जिस्म के घाव भर गये लेकिन रूह पे चोट अब भी है
सब कहते है बहादुर हूं मैं सच बताऊं डर गई थी मैं
इस दिल में भी बहुत कुछ हर वक्त चलता है
पर कुछ सोच के दिल ही दिल में संभल गई थी मैं
कोशिश जारी थी जमाने की तोड़ने की मेरी कब से
तभी तो अब मौत से भी डरती नहीं थी मैं
सुना था चट्टानें तोड़ के निकलते है शोले निकलते है
पर दिन रात शोलों सी जलती रही थी मैं
वो मंजर जो अंधेरों का था चारों तरफ हर दम मेरे
पर रौशनी की तरफ चलती रही थी मैं
मुश्किलें बहुत थी मंज़िल नई थी मगर मेरी
हर मुश्किल के आगे डट गयी थी मैं
औकात क्या है तेरी तू छोटी सी चिंगारी ही तो है
तुझे क्या मालूम लपट तूफान की बन गई थी मैं