हर क्षण घोटाले होते हैं।
हर क्षण घोटाले होते हैं।
ठिठुरती ठंड में मैंने भारत को,
अखबार ओढ सोते देखा ।
इस कमर तोड मंहगाई में,
मैंने भारत को रोते देखा ।।
ग्रीष्म ऋतु में लू के थपेडे,
भारत को सहलाते हैं ।
वर्षा-ऋतु में कितने ही घर,
भारत के बह जाते हैं ।।
गौदाम भरे हैं भारत के,
खाने के लाले होते हैं ।
यहाँ अपने-अपने स्तर पर,
हर क्षण घोटाले होते हैं ।।
कभी रक्षण में कभी भक्षण में,
संरक्षण में घोटाले हैं।
यहाँ बातचीत जीवन-यापन,
आकर्षण में घोटाले हैं।।
जो भय खाता घोटालों से,
उसपर घोटाले होते हैं।
यहाँ अपने-अपने स्तर पर,
हर क्षण घोटाले होते हैं ।।
है आम आदमी घोटाला
घोटाला करें संतरी भी ।
छोटे-मोटे नेता तो छोडो,
इसमें लिप्त प्रधानमंत्री भी।।
यहाँ महानिदेशक, पुलिस अधीक्षक,
द्वारा स्टाम्प घोटाले होते हैं।
यहाँ अपने-अपने स्तर पर,
हर क्षण घोटाले होते हैं ।।
भगवान मानती है जनता,
डाक्टर घोटाले करते हैं ।
किडनी-गुर्दे, आँखे तक,
कहीं और हवाले करते हैं।।
यहाँ प्यार और तकरार में भी,
हरबार घोटाले होते हैं।
यहाँ अपने-अपने स्तर पर,
हर क्षण घोटाले होते हैं ।।
मेरे देश का वर्तमान, भविष्य
घोटालामय ही भूत मिला ।
जिसने आहुति दी प्राणों की,
घोटालामय ताबूत मिला ।।
यहाँ तोप-यूरिया, चारा और,
चारकोल घोटाले होते हैं।
यहाँ अपने-अपने स्तर पर,
हर क्षण घोटाले होते हैं ।।
अब कर्म बना है घोटाला,
और धर्म बना है घोटाला।
किसके पैरों पर चलकर,
बेशर्म बना है घोटाला।।
यहाँ गर्मी, वर्षा,सर्दी में,
वर्दी घोटाले होते हैं।
यहाँ अपने-अपने स्तर पर,
हर क्षण घोटाले होते हैं।
