होली
होली
मुठ्ठियाँ खोल दो
जो खुशबू है
उसे हवा बन
बिखरने दो
बासंती है ऋतु
आम के पेडों को
जरा बौरों से
भरने तो दो।
लो धीरे-धीरे
आहटें देने लगा है
रंगो का मौसम फिर
खोल दो बंद रक्खी
सातो रंगों की पुडिया
जरा सा फाग को
रास्ता दे दो
नभ जो रोज सा
सिमटा है
उसे इंद्रधनुषी
रंगने दो।
बहुत से दर्द है सबके
तुम्हारे भी, हमारे भी
बहुत का साथ दरम्यां
छूटा है, हमारा भी,
तुम्हारा भी
बदलती ऋतु से आओ
कुछ टेसुओं के रंग
हम ले लें
बिखरती खुशबुओं से
थोड़ा भीना सा कलेवर लें
यह जो सूना हो चुका है
घर का आँगन
उसकी थाती पे
जऱा सा खुशियों
को जीवन दें
संदली उबटन कर दें।