होली की ठिठोली
होली की ठिठोली
देखकर होली का त्योहार,
राधा बाल्टी भर लाई रंग,
ताऊ पीकर नृत्य कर रहा,
रंग डाला गायब हुई भंग।
ताई ताऊ में ठन रही थी,
रंग कौन किस पे डालेगा,
थाली भरकर भांग पकौड़े,
देखे कौन इनको खा लेगा।
बंदर खाया भांग पकौड़ा,
नशे में हो गया बंदर चूर,
खाने को वो दौड़ चला तो,
ताऊ-ताई खड़े देखते दूर।
बंदर मारी छलांग बाल्टी,
बन गया बंदर का ही भूत,
खिर खिर कर खूब डराया,
उस घर में नहीं आया फिर।
ताऊ डाला मुंह में ताई रंग,
बस फिर तो एक छिड़ी जंग,
कभी ताई बेलन उठाके मारे,
मार खा खाकर ताऊ था तंग।
किसी की चोली भिगो डाली,
किसी का भिगो डाला दामन,
रंगो की बरसात हुई जमकर,
लगा कि आया रंगों का सावन।
घंटों रंग डाल डालकर वो,
आखिरकार वो आ गये तंग,
चेहरा देखकर लोग डर रहे,
फिर तो खत्म हो चला रंग।
थके हारे आंगन में बैठ गये,
खूब चली फिर जूतमपैजार,
ताऊ थक कर चूर हो चुका ,
ताई आगे उसने मानी हार।
अब तो माफ कर दिया था,
पानी लाये बाल्टी भर भर,
घिस -घिसकर साबुन घंटों,
खत्म हो गया होली का डर।
कई दिनों तक रंग ना छूटे,
ताऊ ताई को देखकर हँसते,
ताऊ ताई अब चिडऩे लगे,
हँसी लगती ज्यों नाग डसते।
ताई ताऊ अब हँस रहे थे,
होली आएगी साल के बाद,
तब तक रंगों को भूल जाओ,
रखो होली ठिठोली को याद।
