हमारी गुस्ताखी
हमारी गुस्ताखी
जिसे खोटा सिक्का कहकर,
तोड़ दी थी उम्मीद सारी,
वहीं सिक्के की कीमत बता कर,
समझा गया हमें हमारी नादानी।
--------
ख्वाहिशों का पिटारा धोते-धोते,
सुबह से शाम, शाम से रात हो गई
पर खुशियाँ थी कि,
सिर्फ छूकर निकल गई।
---------------------
वह तो बस इरादे ही थे ,
जो हमें यहाँ तक ले आए,
वरन परिस्थितियाँ कहाँ दोस्त थी।
---------------------'
भीड़ में खुद को अकेला ही
पाते हैं हर वक्त।
जब अपनों से बेगाने
रहते हैं हर वक्त।
-------------------
जीना नहीं सीखा,
परिवार के साथ
मिल-जुल कर
रहना नहीं सीखा,
फिर जो भी सीखा
सब बेवजह ही सीखा,
और महके तो सही
पर दमके कहाँ।
----------------------
कभी आँधी तो कभी तूफान का
साथ होता है।
रोज संस्कारों के साथ
खिलवाड़ होता है।
किसी की तमन्नाओं का
गला घुटता है।
तो किसी का फूहड़
पन झलकता है।
देख यह बापू कहते हैं,
ना करो बेतार मेरी कुर्बानी।
----------------------------
जब इरादों की बस्ती
सजने लगती है।
मौत भी मस्ती में
गुनगुनाने लगती है।
-------------------------
है ख्वाहिश बस इतनी सी कि,
मेरा चरित्र इत्र बन महके।
सब ना सिर्फ जाने वरन पहचाने मुझे
खुदा का दूत समझ नवाज़े मुझे।
-------------------
सही सोच सही दिशा देती है,
जीने का मकसद बता देती है।
इरादों को पुख्ता बनाती है,
नदी की तरह बहना सिखाती है।
-----------------------
आपका कुछ करना
व कहना जरूरी नहीं।
आपकी उपस्थिति ही हममें
आत्मविश्वास भर देती है।
बहुत खास है आप हमारे लिए,
आप से ही हमारी
गाड़ी पटरी पर रहती है।।