हम कब बदले
हम कब बदले
गया था आज फिर उस गली में
जहां कभी हमारे डेरे हुआ करते थे
आज भी सब बैसा ही है जैसा पहले था
बदला है तो बस कुछ रंग घरों का
घरों में लोग आज भी बही है
हम कब बदले, आज भी सही है
जाना तो था मुझे कहीं और
पर ना जाने कैसे आ पहुंचा इस गली में
गली से झांकते लोगों ने मुझे देखा
मुझे देखकर नज़रे जो चुरायी है
ये देखकर मुझे भी शिकायत कोई नही है
हम कब बदले, आज भी सही है
गलियों से निकले तो खुद को जान पाए
वरना हम तो गलतफहमियों के अंधेरों में गुम थे
गली से बाहर निकलना तो आज भी एक सजा सा है
क्योंकि अंदर थे तो गलतियां भी सुहानी लगती है
और आज वो कहीं और हम कहीं है
हम कब बदले, आज भी सही है।

