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Surendra kumar singh

Fantasy

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Surendra kumar singh

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हम बदल रहे हैं

हम बदल रहे हैं

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सुना था देश बदल रहा है पर सच ये है कि हम बदल रहे हैं

और हमारा ये बदलाव हमारा और शब्दों के

बदलते हुये अर्थ के बीच छिपा हुआ है।


शब्द हमारी अभिव्यक्ति के साधन थे और हमारी

अभिव्यक्ति इस तरह आधारित हो गयी थी शब्दों पर 

कि हम मनुष्य न होकर जमात हो गये थे।


कभी हिन्दू,कभी मुसलमान कभी ब्राह्मण,

कभी दलित कभी अगड़े, कभी पिछड़े

पर अब हम बदल रहे हैं यानि कि मनुष्य बन रहे हैं


और महसूस करने लगे हैं मनुष्य होने का दर्द

और ये यूँ ही नहीं हुआ एक आवाज आयी हमारे अंदर से

तुम मनुष्य हो और सचमुच हम मनुष्य हैं


और भारतीय हैं और हमारे भारतीय होने से

हमारा देश बदल रहा है और यह बात पर आधारित है कि

हम अपने को मनुष्य कहने लगे हैं ये बात और हैं


अभी भी हमारी पहचान को पुराने नामों से होती है

और हम हम नहीं रह जाते जब कि हम है।

हम बदल रहे हैं क्योंकि हम मनुष्य हैं

हमारा देश बदल रहा है क्योंकि हम भारतीय है।


इतना सा आधार है बदलाव का हमसे, देश के बदलाव तक।


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