हे रूह
हे रूह
हे रूह
तू फिर जिस्म बदलेगी
फिर नए रिश्तों में उलझेगी,
कल की तलाश में
यही कहानियां युगों युगों तक गढ़ेगी ।
तेरे जाने से हर आँख में
हर बार आँसू होगा,
जिंदगी और मौत का यही चक्र होगा।
हे रुह
तू जिनके लिए अपनी थी
तूने उनको ही भुला दिया,
देकर उनकी आँखों में आँसू
घर अपना नया बसा लिया।
यह वक़्त का पहिया चलता रहेगा,
जैसे तू बदलेगी रंग
वैसे ही तेरे अपनों का रंग बदलेगा।
हे रूह
तू इस योनि से उस योनि में
जिंदगी जीती रहेगी,
काल के समक्ष परिधान बदलती रहेगी।
कौन अपना कौन पराया
तू कभी न जान सकेगी,
जिनके लिए तू स्वयं से अलग हुई
वो बात भी तू न दोहरा सकेगी।
हे रूह
तेरी तकदीर ही तेरी जिंदगी की नुमाइश है,
हर काल खण्ड में खुद की खुद से आजमाइश है।
हे रूह
तू लौटकर फिर वापिस आएगी,
नए रंग और रूप में
अपनी छवि बनायेगी।
न वो अपने तुझे जान सकेंगे
और न ही तू उन अपनों को जान सकेगी,
इस काल चक्र में तू बस
टुकड़े टुकड़े जीवन जी सकेगी।