है स्वतंत्र देश हमारा फिर भी..
है स्वतंत्र देश हमारा फिर भी..
है स्वतंत्र देश हमारा फिर भी
तलाशती स्वतंत्रता ..
है स्वतंत्र देश हमारा .
पर क्या सबने चखा है
स्वाद स्वतंत्रता का ?
औरत हो या बच्चे प्यारे
नाच नचाते हमको सारे
थोप मर्जियों को अपनी
ख्वाहिशों को देते दबा
सपनों पे भी हमारे रेहते पहरे
आँखें हमारी सपने इनके
पहनावे पे पहरे है
है पहरे खानपान पें
चाहे ओ गर शाकाहार
सर करते फिर परेशान
चाहत उसकी करना कुछ
उनका कहना बैठो चुप
कहीं गर दिमाग चलायें
कहते ओ रक्खो पास
गर ओ बैठे चुप तो
फिर भी तोहमत उनकी
क्या जबान नहीं पास
इन सोने के पिंजरों में
और हीरे जड़ित हथकड़ियों में
दम अब घूँटता है खूब
कैसे कौन करे आजाद हमें भी
पिंजरे तोड़ पायें ना खुद ..