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saru pawar

Tragedy

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saru pawar

Tragedy

बेटियां बेकसुर..

बेटियां बेकसुर..

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माली ने ही कलियां तोडी कोमल सी ..

कहाँ अनचाही थी..पौधें पे ..

बोझ बनती बिटिया मेरे भी कंधों पे


क्या मांगा था कली नें आसमान ?

बस चाहत थी 

मां के आँचल की

बाबुल के खुशाहाल आंगन की..


अंधेरा सा जमाने की फिजाओ में है

खता कहाँ बिटिया बन पैंदा होनें में हैं


गुनाहगार रस्में जमाना हैं

सूली चढती बिटीयाँ बेकसुर..


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